मार्च 13, 2017

मैरी कॉम

जैसा बोओगे वैसा काटोगे।
मैरी कॉम- जन्म 1 मार्च 1983, चुराचांदपुर मणिपुर 
मैरी कॉम ने न केवल 6 विश्व कप प्रतियोगिता में पदक जीते बल्कि 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला मुक्केबाज भी बनीं। अपने जीवन के फलसफे को वे कुछ यूं बयां करती है।

 गांव में शायद सभी बच्चे उतनी मेहनत नहीं करते थे, जितनी हम लोग। हमारे ज्यादातर दोस्त खाते, खेलते और पढ़ते। मैं खेतों में पिता के साथ काम में उनकी मदद करती रहती थी और अपने साथियों को दूर से खेलते हुए देखती थी। अक्सर मुझे बैलों को लेकर बुआई का काम करना पड़ता था। यह बहुत मुश्किल होता था, क्योंकि बैलों को भी नियंत्रित करते हुए चलाना होता था और साथ-साथ बुआई भी करनी होती थी। जब मैंने मुक्केबाजी शुरू की तो मेरे पुरुष मित्र कहने लगे की महिलाओं का खेल नहीं है। पर मैं हमेशा उनसे कहती अगर पुरुष यह काम कर सकते हैं, तो महिलाएं क्यों नहीं। मैं सोचा करती थी कि एक दिन में उन्हें यह करके दिखाऊंगी। मेरा मानना है कि हालात चाहे जैसे हो आप हार मत मानो, हमेशा अगला मौका जरूर आता है।अगर मैं दो बच्चों की मां होकर एक मेडल जीत सकती हूं। तो आप सब भी ऐसा कर सकते हैं। मुझे एक उदाहरण के तौर पर लें और कभी हार ना मानें। केवल अपनी तकनीक या ताकत पर ही यकीन नहीं करती, बल्कि अपने मन पर भी भरोसा करती हूं। एक सफल बॉक्सर होने के लिए एक मजबूत दिल का होना जरूरी है। कुछ महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत होती है पर जब मजबूत दिल होने की बात आती है तो वे फेल हो जाती है। मैंने अपने अब तक के जीवन में यह सीखा है कि जो तुम बोते हो वो तुम काटोगे और जो मैं बोती हूं वह मैं काटूंगी।