मार्च 18, 2017

जीवन का अमृत

जीवन ज्ञान ही मनुष्य के जीवन को सही मार्ग पर चलाने वाला अमृत है। जिस व्यक्ति के पास जीवन संबंधी ज्ञान है वह सुख दुख, हानि- लाभ, अच्छाई-बुराई, पाप- पुण्य, उतार चढ़ाव का ज्ञान उस के पास अधिक है। वही दूसरों से आगे निक वही दूसरों से आगे निकलता है और सफल कहा जाता है।

जीवन दो प्रकार से प्राप्त होता है। मनुष्य स्वयं जीवन जीता है। तरह तरह की गलतियां करता है। प्रत्येक गलतियों के लिए सजा पाता है, सफलता के लिए प्रशंसा का पात्र बनता है। इस मृदुता और कटुता से उसको जीवन संबंधी अनुभव मिलता है। इस अनुभव के आधार पर ही वह जीवन में आने वाले संकटो   और विषम परिस्थितियों को पार करता है। बिना अनुभव का कच्चा आदमी पग-पग पर गिरता है और सजा पाता है। यह अनुभव ही मनुष्य जीवन का निचोड़ है ।

लेकिन अनुभव  द्वारा शिक्षा - प्राप्ति का यह मार्ग बड़ा लंबा और जटिल है। कोई व्यक्ति बार बार गलती करते हैं, फिर भी अनुभव नहीं प्राप्त करते हैं, ना उससे लाभ उठाते हैं। जो व्यक्ति केवल अनुभव के आधार पर आगे बढ़ते हैं वह लाभ तो उठाते हैं,  पर यह अनुभव बड़ी देर में वृद्ध हो जाने पर प्राप्त होता है। कोई- कोई अनुभव तो महीनों और वर्षों में प्राप्त होता है। कभी-कभी ऐसी बड़ी हानि उठानी पड़ती है, जिसका मूल्य जीवन भर चुकाना पड़ता है। यह गलत बात का बड़ा हानिकारक प्रभाव हो सकता है।
दूसरे प्रकार का ज्ञान पुस्तकों  में संचित युग युगों से रक्षित उत्तम मनोमुग्धकारी शैली में लिखित अनुभव से प्राप्त होता है। यदि हम जीवन में प्राप्त अपने निजी अनुभव पर ही निर्भर रहें तो आधा जीवन इन्ही प्रयोगों तथा उपयोगी नियमों को समझने और उपयोग में लाने के तरीकों में लग सकता है, क्योंकि जीवन का प्रत्येक सूत्र बड़ी भारी कीमत पर मिलता है
जीवन एक बड़ी पुस्तक है- इसमें प्रत्येक दिन एक -एक पृष्ठ की तरफ है, प्रत्येक पंक्ति- पंक्ति पर नए रहस्य प्राप्त होते रहते हैं ,लेकिन जीवन एक-दो दिन या एक-दो वर्ष का नहीं होकर वर्षों का है। दूसरे रहस्य हमें तभी प्राप्त होते हैं, जब हमारा पूरा जीवन ही समाप्त हो जाता है।  फिर वह अनुभव निष्कर्षों बहुमूल्य सूत्रों और उपयोगी जीवन नियमों को काम में लाने के लिए जीवन की सांसे ही शेष नहीं बचती। इसलिए जितनी जल्दी हमें जीवन के सच्चे अनुभव लाभदायक नियम और फायदे की बातें कही से प्राप्त हो जाए, तथा जितनी जल्दी हम उन नियमों का प्रयोग करने लगें, उतनी ही जल्दी हम श्रेष्ठ जीवन का निर्माण करते हैं। जिन जिन व्यक्तियों ने जीवन के संबंध में जो जो अनुभव पूर्ण बात लिखी है वह उन्हें अपने दैनिक जीवन में धारण करता है। उनके बल पर आगे बढ़ता है, वह उन नियमों से लाभ उठाता है जिन पर चलकर महान व्यक्तियों ने यश प्रतिष्ठा और सफलता प्राप्त की थी ।

मार्च 15, 2017

कब खेला गया दुनिया का पहला टेस्ट मैच।

मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड

जी हां कल से भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच शुरू होने वाले तीसरे टेस्ट मैच से पहले आज क्रिकेट टेस्ट मैच का बर्थडे है। इस खास दिन को Google भी  माना रहा है। 15 मार्च 1877 में क्रिकेट की दुनिया का पहला टेस्ट मैच खेला गया था। यह मैच 19 मार्च तक खेला गया था, इस पहले टेस्ट मैच में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की टीम पहली बार आमने-सामने उतरी। इसका शुभारंभ मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में हुआ था।
कोई समय सीमा नहीं था था- इस दौरान सबसे खास बात यह थी कि इस टेस्ट मैच का कोई समय सीमा तय नहीं था। जिसमें ऑस्ट्रेलिया एक नई उभरती हुई टीम थी। जबकि इंग्लैंड काफी मजबूत टीम बन चुकी थी, फिर भी इस मैच में उल्टा हुआ। यहां पहले ऑस्ट्रेलिया की टीम टॉस जीतकर बल्लेबाजी करने उतरी, ऑस्ट्रेलिया की ओर से चाल्स बैनरमैन ने शानदार प्रदर्शन किया था।
उंगली में चोट की वजह से-  इन्होंने फिर भी 165 रन बनाए थे, तभी उनकी उंगली  मैं चोट लग गई और मैं पवेलियन लौटना पड़ा था। वहीं जब बैनरमैन आउट हुए उस समय आस्ट्रेलिया काम  स्कोर 240 था। जिसे ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी में बैनरमैन के बदौलत  245 रन बनाए थे। इसके जवाब में उतरी इंग्लैंड की टीम सिर्फ 196 रनों पर सिमट गई थी। वहीं दूसरी पारी में आस्ट्रेलिया 104 चनों पर आउट हो गई।
45 रनों से हरा दिया- चाल्स बैनरमैन का बल्ला नही चल पाया। वहीं लैंड को 153 रन बनाने थे, लेकिन इस बार भी या टीम कुछ खास नहीं कर पाई। पूरी टीम  108 रन बनाकर आउट हो गई जिससे ऑस्ट्रेलिया ने 45 रनों से हरा दिया था। वहीं । आस्ट्रेलिया के बैनरमैन टेस्ट मैच में शतक लगाने वाले पहले खिलाड़ी बने। जबकि इंग्लैंड के अल्फ़्रेड शा टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहली बार बाल डालने के लिए जाने जाते हैं।

मार्च 14, 2017

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

पहली भारतीय महिला डॉक्टर।

आनंदीबाई जोशी

  जन्म 31 मार्च 1865, अवसान 26 फरवरी 1887
बात उस समय की है जब भारत रूढियो से जकड़ा हुआ था ।महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कल्याण में 31 मार्च 1865 को एक हिंदू रुढ़िवादी परिवार में आनंदी गोपाल जोशी का जन्म हुआ। जमींदार पिता ने उनका नाम यमुना रखा। अभी यमुना छोटी ही थी कि अंग्रेजों ने महाराष्ट्र में जमीनदारी प्रथा समाप्त कर जमींदारों की संपत्ति पर कब्जा कर लिया। ऐसे में जोशी के परिवार की आर्थिक हालत खराब हो गई।  यमुना जब नववर्ष की  हुई तो उनकी शादी  उनसे 20 वर्ष बड़े एक विद्युर से कर दी गई थी।

तत्कालीन हिंदू समाज के रिवाज के अनुसार शादी के बाद उनका नाम यमुना से बदलकर आनंदी रख दिया गया। विवाह के बाद  आनंदी के प्रति  गोपाल राव जोशी  जो एक डाक खाने में कलर्क थे,  का तबादला कोलकाता हो गया ।गोपाल राव एक प्रगतिशील विचारधारा के व्यक्ति थे। उन्होंने आनंदी को अंग्रेजी सिखाना शुरू कर दिया। अभी आनंदी 14 वर्ष की ही थी कि उनके आंगन में किलकारियां गूंजीं। उन्होंने लड़के को जन्म दिया, लेकिन इलाज के अभाव में आनंदी के बेटे की मौत हो गई। उनके बच्चे की मौत का कारण यह था कि उस समय तक भारत में महिला डॉक्टर नहीं थी। बेटे की मौत ने उनके जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया। उन्होंने डॉक्टर बनने का संकल्प लिया। गोपाल राव ने उनकी इच्छा का स्वागत किया और उन्हें मेडिसिन पढ़ने का सुझाव दिया।पति की प्रेरणा से आनंदी मेडिसिन की पढ़ाई करने अमेरिका जाने को तैयार हुई। लेकिन रुढ़िवादी समाज ने उनका जोरदार विरोध किया। आनंदी ने सिरमपुर कालेज के हॉल में लोगों को जमा करके यह ऐलान किया कि मैं केवल डॉक्टरी की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका जा रही हूं। मेरी पढ़ाई का मकसद भारत में रह कर यहां के लोगों की सेवा करने का है ।जून1883 में आनंदी न्यूयॉर्क पहुंचीं, 19 वर्ष की आयु में उन्होंने ने मेडिसिन में ग्रेजुएशन और फिर 11 मार्च, 1886 को अपना एमडी भी पूरा कर लिया। जब उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया तो क्वीन विक्टोरिया ने उन्हें बधाई संदेश भेजा। 1886 के अंत में डॉक्टर आनंदीबाई जोशी देश से लौट आई और अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल, प्रिंसपल स्टेट ऑफ कोल्हापुर में एक महिला डॉक्टर के रूप में काम करना शुरू कर दिया, लेकिन वह अधिक समय तक लोगों की सेवा नहीं कर पाई।डॉक्टर आनंदी राव 26 फरवरी 1887 को केवल 22 वर्ष की आयु में हमेशा के लिए संसार से विदा हो गई।

मार्च 13, 2017

मैरी कॉम

जैसा बोओगे वैसा काटोगे।
मैरी कॉम- जन्म 1 मार्च 1983, चुराचांदपुर मणिपुर 
मैरी कॉम ने न केवल 6 विश्व कप प्रतियोगिता में पदक जीते बल्कि 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला मुक्केबाज भी बनीं। अपने जीवन के फलसफे को वे कुछ यूं बयां करती है।

 गांव में शायद सभी बच्चे उतनी मेहनत नहीं करते थे, जितनी हम लोग। हमारे ज्यादातर दोस्त खाते, खेलते और पढ़ते। मैं खेतों में पिता के साथ काम में उनकी मदद करती रहती थी और अपने साथियों को दूर से खेलते हुए देखती थी। अक्सर मुझे बैलों को लेकर बुआई का काम करना पड़ता था। यह बहुत मुश्किल होता था, क्योंकि बैलों को भी नियंत्रित करते हुए चलाना होता था और साथ-साथ बुआई भी करनी होती थी। जब मैंने मुक्केबाजी शुरू की तो मेरे पुरुष मित्र कहने लगे की महिलाओं का खेल नहीं है। पर मैं हमेशा उनसे कहती अगर पुरुष यह काम कर सकते हैं, तो महिलाएं क्यों नहीं। मैं सोचा करती थी कि एक दिन में उन्हें यह करके दिखाऊंगी। मेरा मानना है कि हालात चाहे जैसे हो आप हार मत मानो, हमेशा अगला मौका जरूर आता है।अगर मैं दो बच्चों की मां होकर एक मेडल जीत सकती हूं। तो आप सब भी ऐसा कर सकते हैं। मुझे एक उदाहरण के तौर पर लें और कभी हार ना मानें। केवल अपनी तकनीक या ताकत पर ही यकीन नहीं करती, बल्कि अपने मन पर भी भरोसा करती हूं। एक सफल बॉक्सर होने के लिए एक मजबूत दिल का होना जरूरी है। कुछ महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत होती है पर जब मजबूत दिल होने की बात आती है तो वे फेल हो जाती है। मैंने अपने अब तक के जीवन में यह सीखा है कि जो तुम बोते हो वो तुम काटोगे और जो मैं बोती हूं वह मैं काटूंगी।

मार्च 08, 2017

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भारत के महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है  यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है श्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जो भारत में सबसे पवित्र माना जाता है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे छोटे लिंग है जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव के प्रतीक माने जाते है  अन्य ज्योतिर्लिंगों में केवल शिव विराजमान हैं। जब की यहां ब्रह्मा विष्णु और शिव तीनों ही विराजमान हैं 

यह मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है, या काले पत्थरों से बना हुआ है इस मंदिर का निर्माण तीसरे पेशवा अर्थात नाना साहेब पेशवा ने कराया था।



फ़रवरी 27, 2017

केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर - पर्वत श्रृंखला में स्थित केदारनाथ मंदिर एक प्रमुख तीर्थ  स्थल है,   जहां पर हिंदू भगवान शिव का   ज्योतिर्लिंग स्थापित है! यह 12 ज्योतिर्लिंग में सबसे महत्वपूर्ण है, केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है यह चार धाम में से भी एक है , आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित यह आठवीं शताब्दी के मंदिर के पास ही  मंदाकिनी नदी बहती है यह मंदिर पुराने मंदिर के बगल में स्थित है जिसे पांडवों ने बनाया था,   प्रार्थना हॉल के दीवारों पर विभिन्न हिंदू देवी देवताओं का चित्र  देखें जा सकते हैैं
  
   मंदिर के अंदर ही गर्भगृह है, जहां भगवान शिव की पूजा की जाती है। लोककथाओं के अनुसार कुरुक्षेत्र के युद्ध के उपरांत पांडव अपने पापों के प्राश्चित के लिए इस मंदिर में आए थे। 2013 में आई भीषण आपदा को भी जेल गया था यह मंदिर। केदारनाथ में आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी और देखते ही देखते हजारों लोग पानी की लहर में समा गये थे, इस मंदिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे,  जबकि मुख्य द्वार और आसपास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया था।


फ़रवरी 26, 2017

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर- यह भारत के पश्चिमी तट सौराष्ट्र ( गुजरात) में  स्थित है भगवान शिव  के 12 ज्योतिर्लिंग  मैं से सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है ! 

सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक  व पर्यटक स्थल है, मंदिर परिसर में रात को एक घंटे के लिए साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचिश्र वर्णन किया जाता है प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थस्थान रहा है, त्रिवेणी संगम के समय से ही इस की महानता को लोग मानते आये हैं! समुंदर तट पर होने के कारण ग्रीष्म ऋतु में यहां शितलता रहती है, इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है यहां सदैव मेले सा माहौल रहता है,

जनवरी 30, 2017

क्या आप जानते हैं। भारत में नहीं है दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर। इसे बनाने में लगे मिस्र के पिरामिड से भी ज्यादा पत्थर। भारत से 4800 किलोमीटर दूर कंबोडिया में है। हिंदू अंकोरवाट मंदिर, यह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। 18 वी सदी में सूर्यवर्मन ने इसका निर्माण कराया था यह  मीकांग नदी के किनारे बना है।यह एक विष्णु मंदिर है यह यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है। इसे बनाने में 50 से 1 करोड़ रेत के पत्थर इस्तेमाल किए गए थे। हर पत्थर का वजन डेट डॉन है अचरज की बात यह है कि इतनी संख्या में पत्थरों का इस्तेमाल मिस्र के पिरामिड में भी नहीं हुआ।